anandbandewar
Sunday, December 18, 2011
Monday, June 20, 2011
अगर तुम चल सको....
क्षितिज यहीं करीब है जो तुम चल सको
बढे हो चन्द कदम तलक अभी न यूं थको
हर पहर सहर है मंज़िलें, निराश क्यों हो तुम
झपक पलक न सोओ कहीं मंज़िलें हों गुम
झलक उठी है भोर भी, अब तो तुम जगो
क्षितिज यहीं करीब है जो तुम चल सको
ठोकर हर सहज ही है जो तुम संवर सको
सरल परीक्षा है सत्य की न तुम डरो
अंत: है जो मैं, स्वयं, अहं भष्म कर सको
भष्मराग है कनक सहेज कर रखो
क्षितिज यहीं करीब है जो तुम चल सको
- आनन्द
Wednesday, September 22, 2010

साफ़-सुथरी यमुना
सच पूछें तो प्रकृति ने बाढ मे रूप में हम पर कृपा ही की है, जिससे वर्षों से गन्दगी की मार झेल रही यमुना का पुनरोद्धार हो गया है। जिस कार्य के लिये सरकार की करोडों की योजनाएं नाकाम रही, उसे प्रकृति ने मुफ़्त में कर दिया। बल्कि यमुना नदी को भी अपने जीवित होने का अहसास करने का अवसर दिया है, अब सवाल यह है की हम यमुना को कितने दिन स्वच्छ कर रख पाते हैं। अगर सहेजा जा सके तो यमुना हमेशा ही साफ़ बनी रह सकती है, और हमारे लिये जीवनदायिनी हो सकती है; जिसके लिये आवश्यक है प्राकृतिक संवेदना, कठोर नियम एवं सख्ती से नियमों के पालन की।
अगर पाप-पुण्य के आधार पर दुनिया के सभी देशों के लोगों का आंकलन किया जाये तो शायद सबसे अधिक पापी भारतिय ही पाये जायें। आज हमारी दुर्गति का प्रमुख कारण यही है कि हम किसी भी उपलब्ध साधन का सम्मान नही करते, बल्कि उसका भरसक दुरुपयोग कर उसे उसकी दुर्गति तक पहुंचा कर हीन बना देते हैं। हमारी समस्त नदियां हमारे इसी दुर्व्यवाहार के चलते जीवनदायिनी होने की बजाय बीमारियों का स्रोत बनती जा रही हैं। आदतन इन बातों का ठीकरा हम दूसरों पर या सरकार पर मढ देते हैं, यद्यपि बुनियादी रूप से हम ही इसकी दुर्दशा लिये जिम्मेवार हैं।
ऊपर से मजे की बात यह की प्रकृति की इस कृपा पर भी हमें रोना आ रहा है, और मीडिया के लिये एक और ब्रेकिंग न्युज़ मिल गयी। सभी न्युज़ चैनलों को यह तो नज़र आया की दिल्ली के लोगों के घरों मे यमुना का पानी घुस रहा है, लेकिन यह नही कि हम ही वो लोग हैं जिन्होने यमुना को कूडे-करकट से भर दिया। उन्हे यह तो दिखाई दिया की लोग बेघर हो गये, लेकिन यह नही की हम लोगों वजह से यमुना का अस्तित्व ही मिटने को आया। यमुना में अधिक जल की वजह से जिन लोगों का नुकसान हुआ है उनके प्रति हमारी पूर्ण सहानुभूति है किन्तु यमुना में पुनः जीवन की लहरें हमारे लिए बेहद हर्ष का विषय है, और प्रकृति को कोटि-कोटि धन्यवाद है इस सहयोग के लिये। अब यह हमारा कर्त्तव्य है की प्रकृति की इस कृपा प्रसाद को हम पूरा दे।
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